क़व्वाली सूफी संत और अकीदत से पहचाना जाता हैं। क़व्वाल अपनी शेरो शायरी से नौजवानो के दिलो में राज करते हैं।
लेकिन हालत ए सीमांचल की हाल कुछ ओर हैं। यहां आपको सूफी संगीत नहीं, बल्कि बेशर्मी बेहया से भरी भोजपुरी एल्बम के संगीत सुनने मिलेंगे, लगभग सभी भोजपुरी संगीत गंदगी से भरपूर होते हैं,
लेकिन क़व्वाल उस भोजपुरी संगीत को अपनी क़व्वाली में इस्तमाल करते हैं। जो डबल मीनिंग के होते हैं। जिस सॉन्ग का पर्पज सिर्फ अश्लीलता और स्त्री हनन हो।
मुझे पता नहीं ऐसे गाने को क़व्वाली में इस्तमाल करने की इजाजत कौन देता हैं। अरेगमेंट टीम या फिर क़व्वाल खुद अपनी मर्जी से गाते हैं।
क़व्वाली सुनने हजारों के तादाद में लोग आते हैं। कइयों के मां बहन भी मौजूद होते हैं। उसी बीच अगर सबके सामने, Aye Raja Raja Raja Kareja me samaja
Uthala tani kora bhetai khoobey maja
Bahiyan me kasi ke saiyan- (haye daiyaa, maar dala rey)
Bahiyan me kasi ke saiyan (c) Marela kacha kach kach kach.
ऐसी गाना सॉरी मेरा मतलब क़व्वाली की प्रस्तुति हो तो यकीनन नौजवानो के अंदर भरपूर जोश आ जाते हैं। लेकिन सोचो ऐसी क़व्वाली से समाज में कितना बुरा असर जाता हैं। क़व्वाली सिर्फ मनोरंजन के लिए नहीं हैं, इसका ताल्लुक सूफी संतों से जुड़ा हुआ हैं। ख्वाजा गरीब नवाज के नाम पर हजारों क़व्वाली मिल जाएंगे। जिसे सुनने से दिल बाग बाग हो जाता जाता हैं। नुसरत, राहत, अमजद साबरी से लेकर हजारों क़व्वाल ऐसे हैं। जिसने अपने क़व्वाली को क़व्वाली की तरह गाया हैं। नेहा नाज़ सीमांचल को अपनी कमाई का जरिया समझ कर कुछ भी परोस रहे हैं।
मेरा नेहा नाज़ से बिनती हैं, आप कॉम-ए-मुसलमान के बेटी हैं, ऐसी क़व्वाली गा कर समाज खराब न करे।