जाति और धर्म दो सबसे गर्वीले लफ़्ज़ रहे है. दस मे से साढ़े नौ को अपने धर्म और जाती पर गर्व होता है. अक़्सर ये दोनों चीजें बाई डिफ़ॉल्ट मिली होती है. हाँ कुछ अपवाद होते है जिन्हें देश चुनने का मौक़ा मिला होता है.पिछले कुछ साल मे दस बारह लाख लोगों ने अपनी जननी जन्मभूमि का पल्लू छोड़ इलास्टिक वाला पायजामा मोटी रक़म दे कर ख़रीद लिया है.
रक्त शुद्धता की ख़ब्त ने दुनियाँ मे कितने क़त्ल ए आम करवाये है. हिटलर ने यहूदियों को ख़त्म करना चाहा, पर आख़िरकार अपनी ही खोपड़ी खोल बैठा. अपने इधर भी बहुत दंभ है. ब्राह्मण, क्षत्रीय सीना फुलाये परशुराम के फरसे और राणा प्रताप के भाले का वजन धरम काँटे पर करवा पर्ची लहराते रहते है. एक ही सफ़ महमूद ओ अयाज़ वाले भी सैय्यद, पठान भी गल चुके शिजरा (वंश वृक्ष) को लेमिनेशन करवाते पाये जाते है. इसलिए इधर प्यार मोहब्बत के नग़मे तो बुलंद आवाज़ मे गाये और सुने तो जाते है लेकिन शादी के फ़ेरे और निकाह से पहले हक़ीक़त मे इश्क़ कर डाला तो खाप बैठ जाती है और एन एच १० फ़िल्म बन जाती है. परिवार ज़्यादा प्रगतिशील हुआ तो अपनी जात धर्म गोत्र मे लव मैरिज अलाउड कर देते है.
लेकिन जिस एक चीज़ से सबको बैर रहा है और जिसने सबसे ज़्यादा धर्म, जात और रक्त शुद्धता की लंका लगाई है वो है विज्ञान. इसने कई चमत्कार किए. जिसके कारण परिवार टूटने से बचे लेकिन बाक़ी सब बंधन टूट गये. सबसे बड़ा है बाँझ होने का श्राप (भले ही वीर्य मे शुक्राणुओं की रेस होती ही न हो) ढोती औरत के लिए वरदान आईवीएफ (टेस्ट ट्यूब बेबी). इस आविष्कार की मदद से कितने घरों के वंश वृक्ष आगे बढ़ सके.
धर्म और जाति और अपने ख़ून का अहंकार रोज़ कुचला जाता है जब कोई बच्चा आईवीएफ़ के ज़रिए पैदा होता है. अक्सर स्पर्म या ओवम में से कोई एक किसी ऐसे इंसान ने डोनेट किया होता है जिसका नाम पता गुप्त होता है. कुछ ही केस में शुक्राणु और अंडाणु दोनों सगे माँ बाप के होते है. ज़्यादातर मे कोई एक डोनर का होता है.
जैसे ख़ून बेचने ख़रीदने का धंधा है कुछ वैसा ही स्पर्म और ओवम का है. ग़ैरक़ानूनी है लेकिन आईवीएफ़ का अस्सी प्रतिशत धंधा इन्ही अवैध डोनरो पर टिका है.
सोचिए मूँछ पर ताव दे राणा प्रताप का भाला उठाये वंशावली बाँचता ग्रवित व्यक्ति को पता चले उसके खानदान के चिराग़ की नसों मे खून उसके पूर्वजों के घोड़े की नाल ठोकने वाले का है. या खानदान ए तैमूरिया के शिजरा मे जो नया नाम जुड़ा वो तो वही है जिसे बेगार खटाया करते थे. सब जानबूझकर कर फिर भी वो ख़ामोश रहे. क्योंकि सवाल मर्दानगी का भी है.
धर्म और जाति की तिजारत में कोई कमी नही आई है. बल्कि रोज़ बढ़ रही है. दूसरी तरफ़ खामोशी से डॉक्टर टेस्ट ट्यूब मे नस्लों का घालमेल कर इन्ही बड़े ऊँचे नाम वालों घरों में किलकारी गूँजने का बंदोबस्त कर रहे है. मालूम सबको है लेकिन गोपनीयता बरकरार है. आख़िर मूँछ का सवाल है. सवाल ये भी है कि जब ये बच्चा बड़ा होकर इश्क़ करेगा क्या तब भी नस्ल, गोत्र, सिज़रा मिलाया जाएगा।