मेवात का पिछड़ापन और सरकार का सौतेला व्यवहार

Md karim Didar
By -
देश का सबसे पिछड़ा जिला होने का श्रेय हरियाणा के मेवात जिले को जाता है। बिहार के अररिया, छत्तीसगढ़ के सुकमा, उत्तर प्रदेश के श्रावस्ती और तेलंगाना के आसिफाबाद जैसे जिलों से भी पिछड़ा जिला है। मेवात, हरियाणा का कोई और जिला इस सूची में कहीं नहीं है। सिर्फ और सिर्फ दिल्ली की नाक के नीचे खड़ा मेवात गुरुग्राम की हाइटेक सिटी से सटा हुआ मेवात दिल्ली एनसीआर की चकाचौंध के बीच बुझा हुआ मेवात हरियाणा का 2005 में बना एक नया जिला। आबादी ज्यादा नहीं 11,00,000 थी। नाम के वास्ते कुछ छोटे छोटे शहर है जैसे नूंह, फिरोजपुर झिरका, पुन्हाना, नगीना, तावडू आदि। लेकिन 88% आबादी गांव में ही रहती है। मेवात के पिछड़ेपन का अनुमान लगाने के लिए आपको आंकड़े देखने की जरूरत नहीं है। बस गाड़ी में गुरुग्राम जिले को पार करते ही सड़क के हालात से आपको पता लग जाता है कि आप मेवात में आ गए हैं। आंखें खोलकर इधर उधर घूम आइए चारों तरफ बदहाली, नंगे धड़ंग घूमते हुए कमजोर बच्चे चारों ओर बेरोजगार नौजवानों का झुंड। नूंह शहर में खड़े होकर आप कह नहीं सकते कि यह हरियाणा के किसी जिले का मुख्यालय है।
आज से 17 साल पहले सच्चर समिति ने पाया था कि देश का सबसे पिछड़ा मुस्लिम समुदाय बिहार या उत्तर प्रदेश में नहीं बल्कि हरियाणा के मेवात जिले में है। अपनी इस सूची में हर जिले को शामिल करते वक्त नीती आयोग ने शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, बैंकिंग तथा वित्तीय सेवाओं और बुनियादी इन्फ्रास्ट्रक्चर के तमाम आंकड़ों को शामिल किया है। इस सब की दृष्टि से मेवात को महज 20% अंक मिले हैं। यानी कि अगर देश के सबसे विकसित जिलों से मेवात की तुलना की जाए। वह विकास की तराजू में उनसे एक चौथाई ही है। शिक्षा और स्वास्थ्य दोनों में मेवात की अवस्था दयनीय है। आज भी इस जिले में कुल साक्षरता सिर्फ 56% है और महिलाओं में तो महज 36% ही जिले के लगभग 70% बच्चे एनेमिया यानी खून की कमी के शिकार हैं। यहाँ का किसान मुश्किल से एक फसल ले पाता है और उसका भी दाम सही नहीं मिलता। मवेशी पालन यहाँ के ग्रामीण जीवन का आधार रहा है। हरियाणा के किसी भी जिले की तुलना में यहाँ गौपालन ज्यादा होता है। अगर आप हरियाणा में अफसरों और नेताओं से पूछे तो मेवात के पिछड़ेपन के लिए खुद मेव समाज को दोष देने वाले बहुत मिल जाएंगे। मेव समाज के खिलाफ़ आस पड़ोस में खूब पूर्वाग्रह मिल जाएंगे। दिल्ली में अगर किसी और इलाके के लोग चोरी चाकरी या गुंडागर्दी करें तो उसे कुछ व्यक्तियों या एक गिरोह का काम बताया जाएगा। लेकिन अगर यही काम मेवात के लड़के करें तो मीडिया इसे मेवाती गैंग की करतूत बताकर बदनाम करेगा। खुद मेवात के शुभचिंतक भी कभी कभी गुस्से में स्थानीय समुदाय को दोष दे देते हैं। परन्तु अगर ध्यान से देखें तो मेव समाज मेवात के पिछड़ेपन का शिकार है। गुनहगार नहीं। दुनिया भर में जो भी समुदाय पिछड़ेपन के दंश से रहता है वो साथ में इस तोहमत को भी झेलता है। सच यह है कि मेवात का पिछड़ापन संयोग नहीं है। ये नियोजित पिछड़ापन है। इस पिछड़ेपन की बुनियाद में ऐतिहासिक घटनाएं हैं, सामाजिक पूर्वाग्रह है और राजनीतिक बेरुखी है। मेवाती समाज शायद हमारे देश का वह एकमात्र समुदाय है जिसने पहले मुगल आक्रमणकारियों से लोहा लिया और फिर अंग्रेजों के खिलाफ़ लड़ाई लड़ी। मुगल राजाओं और ब्रिटिश साम्राज्य ने इसकी सजा मेवात को दी। आजाद भारत में उस ऐतिहासिक अन्याय को ठीक करने का अवसर आया था। विभाजन के समय जब दंगों के कारण मेंब भारत छोड़कर पाकिस्तान की ओर जा रहे थे, उस समय स्वयं महात्मा गाँधी ने मेवात आकर मेव समाज से अनुरोध किया था कि वह भारत ही में रहे लेकिन आजादी के बाद ना तो वह ऐतिहासिक अन्याय याद रहा ना ही गाँधी जी का वायदा। लगभग हर सरकार ने मेवात के साथ सौतेला बर्ताव किया।

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!