जजों की नियुक्ति के लिए चुनाव नहीं होती और न ही हमारा 5 साल में लोगों से वोट मांगे जाते। विविधता से भरे भारतीय समाज में स्थिरता बनी रहे, हमारी अदालतों को यह भूमिका निभानी है। ये कहना है भारत के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का, दरअसल 23 अक्टूबर को है अमेरिका की जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी में संवैधानिक कानूनों पर चर्चा का कार्यक्रम रखा गया है। अमेरिका और भारत के सुप्रीम कोर्ट के जज शामिल हुए 12 मैच की रिपोर्ट के मुताबिक कार्यक्रम में चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ से जजों की नियुक्ति करने वाले को सिस्टम पर सवाल किया गया। इसका जवाब देते हुए चंद्रचूड़ बोले, जजों की नियुक्ति के लिए चुनाव नहीं होती और न ही हम हर 5 साल में लोगों से वोट मांगने जाते हैं। जिस तेजी से टेक्नोलॉजी के साथ समाज का विकास हो रहा है। इस दौर में न्यायपालिका का एक स्थिर प्रभाव है। हम उस आवाज़ का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसे समय के उतार चढ़ाव से परे रहना चाहिए और विविधता से भरे भारतीय समाज में स्थिरता बनी रहे। हमारी अदालतों को यह भूमिका निभानी है। सीजेआई ने आगे कहा कि अदालतों और समाज और सामाजिक बदलाव के लिए जुड़ाव का केंद्रबिंदु बन गई है । लोग अब ना केवल परिणामों के लिए बल्कि संवैधानिक बदलाव में आवाज उठाने के लिए भी अदालतों का रुख करते हैं। इसके आगे सीजेआई कहते हैं कि समाज में बदलाव की जरूरत है, लेकिन कई बार में बदलाव की हवा बड़ी तेजी से चलने लगती है। इस वजह से सामाजिक व्यवस्था में तूफ़ान आने का खतरा पैदा हो जाता है और इस तरह के तूफानों का असर दुनियाभर में देखने को मिलता है । ऐसे वक्त पर समाज को स्थिर रखने के लिए अदालतों की जरूरत पड़ती है और हमारी अदालतें ये काम कर रहे हैं। इस कार्यक्रम में चंद्र सेम सेक्स मैरिज केस पर भी बोले। पीजीआई का कहना है कि वो समलैंगिक शादी के मामले में पीठ की अल्पमत के फैसले पर कायम हैं।उन्होंने कहा, कभी कभी अंतरात्मा की आवाज और संविधान का वोट होता है और मैंने जो कहा मैं उस पर कायम हूँ । मैं मेरा मानना था कि समलैंगिक कपल बच्चा गोद ले सकते हैं लेकिन फिर मैंने तीन साथी इससे असहमत थे। बता दे, जहाँ सीजेआई समलैंगिक शादी को मान्यता देने के पक्ष में थे । वहीं बेंच के बाकी तीन जजों की राय अलग थी । सुप्रीम कोर्ट ने 17 अक्टूबर को अपने फैसले में देश में समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया । पांच जजों की संविधान पीठ ने सरकार से फैसले में कहा कि शादी करना कोई मौलिक अधिकार नहीं है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि शायद ही एक कमिटी बनाई जाएं पर अब सरकार एक कमिटी बनाए ताकि समलैंगिक समुदाय को मिल सकने वाले अधिकारों और फायदों का अध्ययन किया जा सके ।